न कॉमेडी, न एक्शन और न हीरो-हिरोइन का प्यार, न ही कोई बड़ा पंजाबी सिंगर… असल में यह वो चीजें हैं जिनके बगैर आज पंजाबी फिल्में नहीं बनती। लेकिन जिस फिल्म कि बात करने जा रहे हैं उसमें ऐसा कुछ नहीं है जो हर पंजाबी फिल्म में होता है। लीग से हटकर मां-बेटी के बेपनाह मोहब्बत को दिखाती है फिल्म दाणा-पाणी।
फिल्म कि कहानी मां-बेटी के मिलाप पर बनाई गई है। अहम मुद्दा मां-बेटी का मिलन, और इस मुद्दे के आसपास बाकी कि कहानियां बांधी गई हैं। लेकिन आंखों में आंसू मां-बेटी के बिछड़ने पर नहीं, उनके मिलने पर आ जाते हैं। फिल्म में जिम्मी शेरगिल, सिमी चहल और गुरप्रीत घुग्गी अहम भूमिका में हैं। हीरो-हिरोइन के मिलने, बिछड़ने और फिर मिलने कि कहानी तो साथ-साथ चलती रहती है इस फिल्म में, लेकिन हीरो-हिरोइन के मिलने से भी बढ़कर है फिल्म में मां-बेटी का मिलन। फिल्म में दो आर्टिस्ट्स का काम बेहद कमाल का है, पहली चाइल्ड आर्टिस्ट सिद्धी राठोर, दूसरी एक्ट्रेस निर्मल रिशी और सिमी चहल। कहानी स्लो है, और ज्यादातर ऑडियंस को पसंद नहीं आई, क्योंकि अब तक पंजाबी सिनेमा कि छवि लोगों के सामने कॉमेडी, गाने और एक्शन से ही संबंधित बनी हुई है। ऐसे में दाणा-पाणी एक सिंपल, इमोशनल ड्रामा मां-बेटी के प्यार पर फोकस करती है और एक फीमेल ओरिएंटेड फिल्म है। डायरेक्टर तरण सिंह जगपाल ने दाणा-पाणी से पहले रब दा रेडियो फिल्म बनाई है, जोकि एक इमोशनल ड्रामा ही थी। तरण की सबसे खास बात है कि वह फीमेल कैरेक्टर्स के इमोशंस को लेकर फिल्में बनाते हैं। रब दा रेडियो में भाभी-ननद का रिश्ता अहम था, तो दाणा-पाणी में मां-बेटी का।
क्या है कहानी फिल्म की?
काफी देर से मां-बेटी के रिश्ते को लेकर फिल्म कि बात हो रही है, जिन्होंने यह फिल्म नहीं देखी, उनकी जानकारी के लिए इस फिल्म में मां-बेटी को उनके घरवाले अलग कर देते हैं, क्योंकि बेटी बसंत के पिता कि मृत्यु अचानक हो जाती है, और उसकी मां की जबरदस्ती दूसरी शादी कर दी जाती है और बेटी को उसके दादा अपने घर रख लेते हैं। बेटी का दिल हमेशा मां से मिलने को करता है। लेकिन कोई नहीं मिलने देता। बस कहीं से उस नन्ही परी को पता लगता है कि उसकी मां कि शादी दूर के किसी गांव में हुई है, बस बचपन से ही उस गांव में जाने के बहाने वो लडकी ढूंढ़ना शुरू कर देती है। और जब वो पल आता है तो ऑडियंस के सांसे थम जाती हैं और आंखें नम हो आती हैं।